स्कूल पाठ्यक्रम में कचरा प्रबंधन विषय हो शामिल

स्कूल पाठ्यक्रम में कचरा प्रबंधन विषय हो शामिल

भारत में बढ़ते शहरीकरण और उसके प्रभाव से हमारी निरंतर बदलती जीवन शैली ने आधुनिक समाज के सम्मुख घरेलू तथा औद्योगिक स्तर पर उत्पन्न होने वाले कचरे के उचित प्रबंधन की गंभीर चुनौती प्रस्तुत की है। प्रतिवर्ष न केवल कचरे की मात्रा में बढ़ोतरी हो रही है, बल्कि प्लास्टिक और पैकेजिंग सामग्री की बढ़ती हिस्सेदारी के साथ ठोस अपशिष्ट के स्वरूप में भी बदलाव नज़र आ रहा है। भारत में बढ़ते अपशिष्ट प्रबंधन की बढ़ती समस्या ने देश को इस विषय पर नए सिरे से विचार करने को मजबूर किया है। और इस विषय में कई तरह के सराहनीय प्रयास भी किये जा रहे है। जहाँ देश का सरकारी वर्ग इसके लिए प्रयासरत है वहीं देश के आम नागरिक विशेषकर बच्चों को इस विषय में जागरूक और शिक्षित करने की आवश्यकता है।

सन 1802, में कवि विलियम वर्ड्सवर्थ ने अपनी कविता द हार्ट लीप्स अप में “द चाईल्ड इस फादर ऑफ मैन” लिखा। व्याख्याओं से पता चलता है कि मनुष्य अपने बचपन की आदतों से आकार लेता है और इसलिए एक स्वस्थ बचपन की शिक्षा के महत्व से इनकार नही किया जा सकता।

छात्रों को स्कूल में भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान जैसे विषय पढ़ाए जाते हैं लेकिन कचरा प्रबंधन उनकी शिक्षा का हिस्सा क्यों नहीं है। बेंगलुरू निवासी अर्चना कश्यप और उनके सहयोगियों ने ‘ट्रैशोनॉमिक्स’ नामक पुस्तक के साथ बच्चों मे इनसे जुड़े मूल्यों को विकसित करने का प्रयास किया है।

पिछले साल मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पूरे भारत में स्कूली पाठ्यक्रम में कचरा प्रबंधन विषय को जोड़ने का प्रस्ताव दिया था। तब से भारत के कई स्कूलों ने अलगाव, पुनः चक्रण और खाद बनाने के अभ्यास को शिक्षा प्रणाली में शामिल किया है।

बच्चे स्वाभाविक रूप से जिज्ञासु और रचनात्मक होते है, इसलिए उन्हें अपनी कल्पना शक्ति का उपयोग करते हुए अपशिष्ट सामग्री को उपयोगी वस्तु के रूप में देखने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
प्लास्टिक की बोतलों को प्लांटर्स में बदलना, हर्ब गार्डन शुरू करना तथा बोतलों के ढक्कन से मोसैक आर्ट बनाने जैसी गतिविधियाँ बच्चों को रचनात्मक रूप से सोचने में और कम उम्र में जागरूक बनाने में मदद करती है।

भारत में बच्चों को कचरा प्रबंधन की सही शिक्षा मुहैया कराने की आवश्यकता है जिससे की एक ऐसे समाज का निर्माण हो जहाँ वस्तुओं की कम बर्बादी हो और पुन: उपयोग और पुनर्नवीनीकरण करने पर ।

पर्यावरण के प्रति अधिक जागरूक बनाकर, हम बच्चों को दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने की कुंजी दे सकते है और यदि वे अपशिष्ट प्रबंधन की शिक्षा माध्यमिक स्तर से प्राप्त करते हैं तो आगे चलकर इसे ही उच्च शिक्षा में विशिष्ट विषय के रूप में चुन सकते हैं और इसपर व्यापक शोध इत्यादि कर सकते है।