भारत सरकार ‘एक देश एक चार्जर’ के नियम पर तेजी से काम कर रही है। भारत में जल्द ही इस नियम को लागू किया जा सकता है। इस फैसले के अनुसार कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का एक ही चार्जर होगा। इन उपकरणों में सभी कंपनियों के मोबाईल, लैपटॉप, इयरफोन और दूसरे उपकरण शामिल हैं। इस संबंध मे भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी प्रयास चल रहे है। इसका मुख्य उद्देश्य धरती से ई-वेस्ट यानि इलेक्ट्रॉनिक कचरे को कम करना है। इससे प्रकृति को तो फायदा पहुँचेगा ही साथ ही अनावश्यक खर्च होने वाले पैसों की भी बचत होगी ।
इस समय लोग हर डिवाइस के लिए अलग चार्जर खरीदने के लिए मजबूर हैं। टैबलेट, मोबाइल फोन और लैपटॉप में एक जैसे चार्जर इस्तेमाल करने की सुविधा नहीं है। एन्ड्रॉयड और IOS के अलग – अलग चार्जर है। IOS के उपभोक्ताओं के साथ हमेशा यह समस्या होती है कि जब उनका मोबाइल डिस्चार्ज हो जाता है तो उन्हें आस-पास चार्जर नहीं मिलता क्योंकि वे एंड्रॉयड के उपभोक्ताओं से घिरे हुए होते हैं। अगर दोनों ही डिवाइसों का एक जैसा चार्जर होता तो लोगों को इस समस्या का सामना नहीं करना होता।
राष्ट्रीय संगठन के शोध के अनुसार इस एक देश एक चार्जर योजना से कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी, जिससे पर्यावरण को कम नुकसान होगा। अभी जब हम अपना मोबाइल फोन चार्ज करते हैं तो इस दौरान अलग-अलग तरह की कई ग्रीन हाउस गैसें निकलती हैं जो वातावरण में घुल जाती है।
यूरोपियन यूनियन का अनुमान है कि एक ही तरह के चार्जर के आने से प्रतिवर्ष 11 लाख टन इलेक्ट्रॉनिक कचरे को पैदा होने से रोका जा सकेगा।
‘एक देश एक चार्जर’ का नियम इसलिए भी जरूरी है क्योंकि जिन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को हम इस्तेमाल करने के बाद फेंक देते हैं उनमें से अधिकतर को दफना दिया जाता है जिससे धरती में इसके हानिकारक केमिकल लीक होते हैं। ई-वेस्ट से निकलने वाले केमिकल हमारे शरीर के लिए बहुत हानिकारक है, जिससे विभिन्न प्रकार की बिमारियाँ और कैंसर का भी खतरा हो सकता है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में करीब 5.36 करोड़ मेट्रिक टन ई-वेस्ट निकला था। यह 2030 में बढ़कर 7.4 करोड़ मेट्रिक टन पर पहुँच जाएगा। जलवायु परिवर्तन से निपटने के साथ ई-कचरे को धरती से कम करना सरकार की प्राथमिकताओं में से एक है। भारत सरकार का लक्ष्य है कि साल 2030 तक 45% तक ई-कचरे को खत्म कर दिया जाए। ऐसे में ‘एक देश एक चार्जर’ से बहुत हद तक ई-वेस्ट को कम किया जा सकता है और यह पृथ्वी और पृथ्वी वासियों दोनों की ही सेहत के लिए एक सकारात्मक कदम है।